कितने राज़ हैं मुझमें बतलाऊँ क्या,,,,?
बंद एक मुद्दत से हूँ खुल जाऊँ क्या,,,,?
कभी मिन्नत, कभी खुशामद, कभी गुज़ारिश, कभी इलतेजाह,,,,
और क्या क्या करुँ,,? अब मर जाऊँ क्या????
यकीं किया तो ये जाना यकीं में क्या है,,,,
ये आसमां से पूछो ज़मीं में क्या है,,,,
तुम्हारे हाथ का गुलदस्ता आ रहा है नज़र,,,, मगर ये तो पता चले आसतीं में क्या है...
एक आलस भरी चाय,
एक भारत आसटरेलिया का मैच,
एक सुस्त झपकी और अधपढ़ी किताब में गुज़र गया,,,,
एक हफ़ते किश्त भर के खरीदा था
*इतवार*,,,, अभी तो आया था ना जाने किधर गया....
प्यार होने के लिए खूबसूरत होना जरूरी नहीं सब कुछ खूबसूरत लगने लगता है जब प्यार हो जाता है
बातों में मिठास आँखों में नमी है,,,,
ये मत पूछना के ये किस दौर का आदमी है,,,,
तुम ये ना समझना बहुत खुश हूँ मैं,,,,
महफ़िल में बैठा हूँ हँसना लाज़मी है....
मुश्किलों से कह दो, उलझा ना करे हमसे...
हमें हर हाल में जीने का हुनर आता है....
अब जो बाज़ार मे रखे हैं तो, हैरत क्या है
जो भी देखेगा वो पूछेगा की क़ीमत क्या है
ये जो मन्दी का ज़माना है गुज़र जाने दे,
फिर पता तुझको चलेगा मेरी क़ीमत क्या है..
कभी शाह, कभी फ़क़ीर, तो कभी दिलनशीं की तरह...
ये ज़िन्दगी हमसे रुबरु होती है अजनबी की तरह...